परंतु प्रिय प्रिए

सुश्री ईप्से! कहो कैसी हो औ’ कैसे हैं हालात तुम्हारे,
क्या चुटकी भर भी ज़िंदा हैं मेरे लिए जज़्बात तुम्हारे,
पूछो! मेरे तो अभी भी हरे-भरे-खरे हैं ख्यालात तुम्हारे,
पर अब बहुत हुआ, नित-दिन यादों में ना आती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

आज यूँ ही चार वर्ष, दस दिन पूर्ण हो गए संग तुम्हारे,
प्रथम जन्मोत्सव पर चंचल चेहरे में देखा ‘उमंग’ तुम्हारे,
द्वितीय पर मिला था मुझे विरह रूपी मोहभंग तुम्हारे,
आज चतुर्थ जन्म दिन मेरे शुभाशीष रिक्त मनाती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

ना किया था, और ना कभी करूंगा अपमान तुम्हारे,
“ऋतिकात्म” में सदैव जीवित रहेंगे सम्मान तुम्हारे,
पिछले वर्ष ही गंग-तर्पण कर चुका पिण्डदान तुम्हारे,
बस भोली-भाली बातों से तुम भोले-भाले पटाती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

दफ़नाया जिसने मुझे क्रूर से हैं वो केवल शस्त्र तुम्हारे,
बड़े प्यार से दिल में चुभे हैं शब्द रूपी ब्रह्मास्त्र तुम्हारे,
प्रेम से ज़्यादा मुझे मिले है सिर्फ़ ही क्रोधास्त्र तुम्हारे,
ख़ुद रिश्ता तोड़कर “ऋतिक” पर आरोप लगाती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

सच्चे इश्क़ में वो “कैजुअल” वाले उपहास तुम्हारे,
देखना पसंद करूंगा मैं, पर केवल मृत लाश तुम्हारे,
शासक तो नहीं पर ज़रूर मिटाऊंगा इतिहास तुम्हारे,
आई डोंट लव यू बट वी केन बी फ्रेंड्स से फसाती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

पता नहीं किस जन्म का चुका रहा हूँ ऋण तुम्हारे,
चिंता व असंतुलित जीवन को मैंने जाना बिन तुम्हारे,
प्रथम-प्रेम-प्रतिशोध ले, अच्छे कट रहे होंगे दिन तुम्हारे,
बद्दुआ में ख़ुदा से कहा है “मृत्यु तक दवाइयाँ खाती रहो”,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।

न बनना मुझे अब सकारात्मकतावादी वैद्य तुम्हारे,
न कर सकता सार्वजनिक मद्य में लिखे गद्य तुम्हारे,
प्रस्तुत है केवल तुम्हारे लिए अंतिम कुछ पद्य तुम्हारे,
इसे तुम अवश्य पढ़ो पर मुझे फ़ोन न लगाती रहो,
परंतु प्रिय प्रिए, सदैव अप्सरा जैसी मुस्कुराती रहो।।

सृजक : ऋतिक राज
संपादक : निकिता सिंह

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